उम्मीद नशा मुक्ति केंद्र इंदौर एवं पुनर्वास केंद्र नशा पीडितों को नशे से आने मे सहायता देने के साथ साथ समाज में खासकर बच्चों और युवाओं में मादक पदार्थों के सेवन से होने वाले दुष्परिणामों के बारे मे जागरुकता फैला रहा है । यह कार्य स्कूल और कॉलेज मे नशा मुक्ति वर्कशॉप करके सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से, रैलियों के माध्यम से, बस्तियों में जागरूकता अभियान, हस्ताक्षर अभियान और संकल्प पत्र के माध्यम से किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त शुद्धि नशा मुक्ति केंद्र महिला एवं बाल विकास विभाग के साथ मिलकर नशा पीड़ित स्ट्रीट चाइल्ड को नशा मुक्त तथा उनका पुनर्वास करने का कार्य कर रहा है। नशा मुक्ति के कार्य के अलावा समाज में फैली अन्य कुरीतियों के खिलाफ दी शुद्धि नशा मुक्ति केंद्र जागरूकता अभियान चलाता है।
शराबी या नशैलची (addict) शब्द सुनते ही एक ऐसे आदमी का चेहरा सामने आता है जो सबसे लड़ता रहता है, बिना बात गालियां बकता रहता है, घर का समान बेच रहा होता है, उसका व्यापार बंद हो चुका होता है या नौकरी जा चुकी होती है, उसके बीबी, बच्चे और वो खुद दयनीय स्थिति में होता है। क्या हमे लगता है कि कोई व्यक्ति ऐसी ज़िन्दगी चाहता होगा ? इसका जवाब हम सभी न में ही देंगे।
फिर ऐसा क्यों होता है वो आदमी अपना काम, सम्मान,संबंध और बहुत बार अपना जीवन भी दाव पर लगा होने के बाद भी अपना नशा बंद क्यों नहीं करता है और बहुत से मामलों में तो डॉक्टर ने बोला भी होता है कि यदि और पीयोगे तो मर जाओगे और वो व्यक्ति शराब (alcohol) रोकने की जगह पीकर मर जाता है।
भारत में लगभग हर वर्ष लगभग 5 लाख लोग शराब के कारण मर जाते है, जबकि उनमें से अधिकतर को डॉक्टरों द्वारा पहले ही बताया चुका होता है कि और पियोगे तो मर जाओगे, ऐसा क्यों है ? इसका जवाब हम लोगों के पास नहीं है क्योंकि अधिकतर लोगों की सोच होती है कि एक शराबी या एडिक्ट(addict) नशामुक्ति चाहता ही नहीं है और दूसरों को परेशान करने के लिए जानबूझकर पीता है या वो मरने के लिए उतावला है, लेकिन ऐसा नहीं है।
इस प्रश्न का जवाब सर्वप्रथम एल्कोहलिक एनोनिमस (Alcoholic Anonymous) नामक संस्था ने 1935 में दिया जिसने कहा कि एडिक्शन एक बीमारी है इसने बताया कि 100 नशा करने वालों में से लगभग 8 से 10 प्रतिशत लोग ऐसे होते है कि वे जब किसी मूड या माइंड बदलने(अल्टर) करने वाले पदार्थ जैसे शराब, गांजा, अफीम या स्मैक के संपर्क में आते है या कहे की उसको उपयोग करना शुरू करते है तो उनके शरीर में एक एलर्जी होती है एलर्जी मतलब एक असामान्य प्रतिक्रिया, जो सामान्यतः सभी को नहीं होती है जिसके कारण उनका शरीर और-और (more & more) नशा मांगने लगता है ,वो चाह कर भी अपने आप को ज्यादा नशा करने से रोक नहीं पाते हैं और ना पूरी तरह से छोड़ पाते है और उनका नशा लगातार बढ़ता जाता है ।
इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति का इससे निकल ना पाने का कारण उस पीड़ित व्यक्ति में अपनी समस्या को लेकर अस्वीकार (denial) करना होता है क्योंकि उसने अपने मस्तिष्क में शराबी या नशैलची (alcoholic/addict) की एक पिक्चर बनाई होती है जिसमें वो शुरुआत में अपने को फिट नहीं कर पाता है वो हमेशा अपने से ज्यादा नशा करने वालों से अपने नशे कि तुलना कर के अपनी समस्या को छोटा कर के देखता रहता है, जब तक वो उस स्तर तक ना पहुंच जाए वो मानता ही नहीं है कि उसको नशे से समस्या है। शुरू में वो बोलता है कि में फलाने के जैसे रोज तो नही पीता, फिर जब वो रोज पीने लगता है तो वो किसी अन्य को दिखाकर कहता है कि मैं ढिकाने की तरह सुबह से तो नहीं पीता, और जब वो खुद सबेरे से पीने लगता है तो फिर किसी और उससे ज्यादा वाले से तुलना करने लगता है जैसे कि मैं शराब की दुकान के बाहर पड़ा तो नही रहता। कुल मिलाकर वो किसी अपने से ज्यादा वाले से तुलना कर के अपनी समस्या को नकारता रहता है।
हालाँकि एक दिन आता है जब वो अपनी समस्या को स्वीकारने लगता है पर तब तक बहुत देर हो जाती है और वो इतना गहरा फंस चुका होता है कि उसके खुद बिना मदद के बाहर आने की सम्भावना बहुत कम हो जाती है।
जब व्यक्ति मानने लगता है कि उसको नशों से समस्या है और वो सामान्य तरीके नशा नहीं कर पाता है तो वह छोड़ना तो चाहता है, किन्तु नशों पर उसकी शारीरिक और मानसिक निर्भरता के कारण उसका शरीर और दिमाग नशा मांगता है ,यह सब कुछ जानते हुए कि और पीना ठीक नहीं है और “मैं जब पीता हूँ तो खुद को ज्यादा पीने से रोक नहीं सकता हूं”, उसके दिमाग में नशे कि ओर ले जाने वाला एक विचार होता है जिसको मानसिक खिंचाव (mental obsession) कहते है।
वो यह होता है कि “आज थोड़ा सा लिमिट में कर लेता हूं और कल से बंद कर दूंगा” ये विचार रोज आता है कि “कल से बंद, आज थोड़ी सी पी लेता हूं,एकदम से छोड़ना ठीक नहीं है” अधिकतर देखा गया है कि पीने जाते समय उसके पास एक ईमानदार विचार होता है कि “आज लिमिट में पियूंगा” किन्तु उसकी बीमारी का जो लक्षण है कि, वो जैसे ही थोड़ा सा नशा करता है फिजिकल एलर्जी के कारण उसका शरीर और-और ( more more ) मांगने लगता है जिस कारण वो स्वयं को ज्यादा पीने से रोक नहीं पाता है। मानसिक खींचाव (mental obsession) के कारण उसका कल कभी नहीं आ पाता है।
लम्बे समय तक नशे करने के बाद व्यक्ति के अंदर अपनी गलतियों के कारण अपराधबोध (guilt ), भय और खुन्नस (resentment) आ जाते है, जिसके कारण वो स्वयं को अकेला (isolate) कर लेता है। वह लोगों और परिस्थितियों का सामना बिना नशे के नहीं कर पाता है। इनके समाधान की भी आवश्यकता होती है क्योंकि नशा बंद करने के बाद ये बातें उसे फिर से नशे की ओर ले जाती हैं।
अमेरिकन मेडिकल एोसिएशन (American Medical Association) ने 1956 में एडिक्शन को बीमारी घोषित किया इसके बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी 1964 में एडिक्शन को बीमारी घोषित किया है तथा भारत सरकार के स्वास्थ्य विभाग भी बीमारियों की सूची में एडिक्शन को F 9 से F 20 तक डाला हुआ है, पर हमारे समाज में इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति की छवि एक खलनायक की होती है।
उसके साथ लोगों की वो सहानुभूति उसके साथ नहीं होती है जो की किसी अन्य बीमारी से पीड़ित व्यक्ति के साथ होती है। हमारे समाज द्वारा इस बीमारी से निपटने का पहला उपचार जूता होता है, अर्थात सबसे पहले उसको पीटा जाता है और जब इससे भी बात नहीं बनती तो कसम, महामृत्युंजय जाप, कालसर्प योग यज्ञ, बाबा, भभूत आदि का दौर चलता है और सबसे आखिर में रामबाण “शादी कर दो ठीक हो जाएगा”।
क्या हम किसी और बीमारी में ये तरीके उपचार के लिए आजमाते है ? नहीं। तो फिर एडिक्शन को हम कैसे इन तरीकों से ठीक कर सकते है? एक शराबी या नशैलची(addict) से उम्मीद की जाती है कि वो इच्छा शक्ति से ठीक हो जाए क्या हम कोई और बीमारी जैसे जुकाम,दस्त या बुखार को इच्छा
शक्ति से ठीक कर सकते है ? यदि नहीं तो हम एडिक्शन जैसी जानलेवा बीमारी से पीड़ित व्यक्ति से कैसे उम्मीद कर सकते है कि वो इच्छा शक्ति से अपना उपचार कर खुद ठीक हो जाए ? इस समस्या से निपटने के लिए आज सबसे ज्यादा जरूरत समाज को इन पीड़ित व्यक्तियों और इस समस्या के प्रति अपना नजरिया बदलने की है। आइए हम पहले इस समस्या के बारे में जाने और फिर इसका समाधान करें।
अचानक नशा बंद करने के कारण जो शारीरिक तथा मानसिक परेशानियां होती है कई बार तो यदि ठीक से इसका प्रबंधन किया जाए तो अत्यधिक मात्रा में नशा करने वाले की अचानक नशा बंद करने से मृत्यु भी हो सकती है। इस समस्या के समाधान के लिए हमारे केंद्र में नशा मुक्ति के विशेषज्ञ साइकिएट्रिस्ट, एमबीबीएस डॉक्टर तथा नर्स की सुविधा उपलब्ध है जिनके द्वारा विथड्रावल मैनेजमेंट किया जाता है जिससे एकदम से नशा बंद करने के बाद भी उन्हें किसी तरह का कष्ट नहीं होता है।
लंबे समय तक नशा करने के कारण शरीर विषाक्त(intoxicated) हो जाता है, विष को शरीर से निकालने के लिए शरीर का विषहरण ( detoxificarion ) दवाइयों के द्वारा चिकित्सक की देख-रेख में किया जाता है।
व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रखने के लिए नियमित योग, प्राणायाम, ध्यान और जिम करवाया जाता है। इसके द्वारा उसके मस्तिष्क के असक्रिय सेल ( inactive cells) को सक्रिय करवाया जाता है। इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रकार इनडोर खेलों (indoor games) के माध्यम से उसको नशे के अलावा अन्य मनोरंजन के साथ जीना सिखाया जाता है।
उम्मीद नशा मुक्ति केंद्र- इंदौर मध्य प्रदेश के उन चुनिंदा नशा मुक्ति केंद्रों में से एक है जहाँ नशा पीड़ितों को खुला परिवेश उपलब्ध करवाया गया है जहाँ वे धूप लेते है तथा बैडमिंटन एवं चेयर रेस आदि खेल खेले जाते है।
हमारे केंद्र में पीड़ित व्यक्ति को शुद्ध शाकाहारी, पौष्टिक और सात्विक आहार तथा रात को सोने से पहले दूध दिया जाता है। यहाँ पीड़ितों से भोजन नही बनवाया जाता है, जिसके लिए अलग से कर्मचारी नियुक्त किये गए है। स्वच्छ पानी के लिए आर ओ प्लांट केंद्र में लगा हुआ है।
कुछ व्यक्ति नशे के ऊपर अत्यधिक शारीरिक और मानसिक निर्भरता हो जाने के कारण सोचने समझने और स्वयं को रोक पाने में असमर्थ होते है, ऐसे लोगों को केंद्र में लाने के लिए वाहन सुविधा उपलब्ध है।
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हमारे यहां शराब, गांजा, अफ़ीम, कोकीन, ब्राउन शुगर, नशीली गोलियां और अन्य सभी प्रकार के नशों से हमेशा के लिए नशा मुक्त किया जाता है। गूगल एवं फेस बुक पर जनता द्वारा भोपाल (Bhopal) के नशा मुक्ति केंद्रों (deaddiction centre in bhopal) को दिए गए रिव्यूज़ (Reviews) के अनुसार शुद्धि नशा मुक्ति केंद्र (Shuddhi Deaddiction Centre) भोपाल (Bhopal) का सर्वाधिक लोकप्रिय एवं सफल नशा मुक्ति केंद्र (Deaddiction Centre) है।